छत्तीसगढ़ में चांपा की रथयात्रा दर्शनीय ढाई सौ सालों से चली आ रही परंपरा
जगन्नाथ मंदिर को संरक्षित कर सहेजने की दरकार
छत्तीसगढ़ में चांपा की रथयात्रा दर्शनीय ढाई सौ सालों से चली आ रही परंपरा
लगभग 250 वर्ष पुरानी चांपा के श्री जगन्नाथ मठ मंदिर, चांपा के धरोहरों की सुध किसी को नहीं हैं। चांपा का सुप्रसिद्ध राम जानकी मंदिर, बड़े मठ मंदिर के नामों से अंचल में मशहूर इस मंदिर में भगवान् जगन्नाथ, बलदेव एवं सुभद्रा देवी सहित राम जानकी की विशालकाय प्रतिमा हैं।
अद्भुत हैं चांपा के जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियां
छत्तीसगढ़ में चांपा की रथयात्रा दर्शनीय ढाई सौ सालों से चली आ रही परंपरा
चांपा के जगन्नाथ देवालय के मंदिर के सामने ही हनुमान जी की आदमकद दो मूर्तियां हैं। जिसमें एक सांद्र सिन्दूर से लिप्त और दूसरी मूर्ति दोनों हाथ जोड़े इस तरह बैठी हैं, मंदिर के सामने एक विशाल प्रांगण हैं। यहां पर रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, रथयात्रा, हनुमान जयंती, दशहरा, दीपावली आदि पर्व में भक्त जनो के विशाल समुदाय से प्रांगण भर जाता हैं। इसी व स्थान पर प्रतिवर्ष श्रीमद्भभागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह एवं महिला मंडली द्वारा राम नाम सप्ताह का आयोजन किया जाता हैं। साहित्यकार शशिभूषण सोनी ने बताया कि पत्थर के विशाल चट्टानों से बना हुआ यह अद्वितीय जगन्नाथ मंदिर है। अधिकांश लोगों का
कहना हैं कि इस मंदिर के निर्माताओं में उड़िया कलाकारों का योगदान हैं।
स्थापत्य मूर्ति कला का अद्भुत उदाहरण जगन्नाथ मंदिर
छत्तीसगढ़ में चांपा की रथयात्रा दर्शनीय ढाई सौ सालों से चली आ रही परंपरा
चांपा नगर के ऐतिहासिक धरोहर के रूप में यहां का जगन्नाथ मंदिर अंचल में स्थापत्य कला एवं मूर्तिकला का
छत्तीसगढ़ में चांपा की रथयात्रा दर्शनीय ढाई सौ सालों से चली आ रही परंपरा
प्रतिनिधित्व करने वाला एक मात्र मंदिर हैं। बड़े मठ मंदिर में भगवान जगन्नाथ जी, बलभद्र और बहन सुभद्रा की काष्ठ शिल्प की मूर्तियां दर्शनीय हैं। सामने मंदिर में हनुमानजी की आदमकद मूर्ति शोभायमान हैं। वर्तमान में मंदिर की देखरेख गृहस्थ संत पंडित लालदास महंतजी कर रहे हैं। यह अत्यंत सुखद बात हैं कि लगभग लगभग दो- सौं पचास वर्ष प्राचीन ऐतिहासिक महत्व के श्री जगन्नाथ मंदिर (बड़े मठ मंदिर) चांपा के रखरखाव की ओर मंदिर के महंत लालदास महंत ध्यान दे रहे हैं और बिना शासकीय सहयोग से जीर्णोद्धार स्वयं के व्यय से करवा रहे हैं। जगन्नाथ मंदिर के इस देवालय में नक्काशीदार बेल-बूटे, आकर्षक मूर्तियां, नृत्य-संगीत करती महिलाएं, पूजा-अर्चना में लीन भक्त वृंद और स्थापत्य कला आज़ ठीक तरह से रखरखाव नहीं होने के कारण कृतियों का क्षरण हो रहा हैं। अभी कुछेक वर्ष पहले छत पर कांक्रिट करवाकर, पूरे मंदिर का प्लास्टर कराने के बाद रंग-रोगन मंदिर व्यवस्थापन समिति द्वारा करवाया गया हैं। 94 वर्षीय वयोवृद्ध पंडित लाल दास महंत पुरातात्विक महत्व के ऐसे स्थल की देखरेख कर रहे हैं लेकिन आज ठीक तरह से यानी कि योजनाबद्ध तरीके से रखरखाव और संरक्षण की जरूरत हैं। इनकी संभावित सूची बनाकर जीर्णोद्धार करवाने की दिशा में राज्य सरकार को अवगत करवाने की आवश्यकता हैं।
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