रेत उत्खनन छत्तीसगढ़ में हमेशा से एक विवादित विषय रहा है। मानसून के दौरान हसदेव नदी जैसे प्रमुख जल स्रोतों में अवैध रेत उत्खनन एक गंभीर समस्या बन गई है। यह समस्या केवल पर्यावरणीय नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को भी जन्म देती है।
अवैध रेत उत्खनन की वास्तविकता
छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले में हसदेव नदी के किनारे रेत माफिया रात के अंधेरे का फायदा उठाते हुए जेसीबी मशीनों का उपयोग करके रेत का अवैध उत्खनन करते हैं। यह स्थिति तब है जब राज्य सरकार ने 15 जून से 15 अक्टूबर तक रेत उत्खनन पर पाबंदी लगा रखी है। बावजूद इसके, रेत माफिया बिना किसी डर के अपना कारोबार जारी रखते हैं।
रेत उत्खनन के लिए चेन माउंटेन मशीनों का इस्तेमाल होता है, जो नदी और उसके किनारों से रेत निकालते हैं और फिर उसे नदी तट पर डंप कर दिया जाता है। दिन के समय इसे स्थानीय बाजारों में बेचा जाता है। यह चौंकाने वाला तथ्य है कि जिले में रेत के 16 से अधिक अवैध घाट मौजूद हैं, जहां यह कार्य धड़ल्ले से चल रहा है।
प्रशासन की भूमिका
इस समस्या की जानकारी कलेक्टर और खनिज विभाग के अधिकारियों को है, लेकिन उनके द्वारा की गई कार्रवाई न के बराबर है। ऐसा लगता है कि अधिकारियों की कार्रवाई केवल कागजों तक सीमित है। जिले के खनिज अधिकारी हेमंत चेरपा का कहना है कि शिकायत मिलने पर कार्रवाई की जाती है, लेकिन पर्याप्त कर्मचारियों की कमी के कारण हर घाट पर छापेमारी नहीं हो सकती।
यह बात सच है कि अवैध रेत उत्खनन की जानकारी मिलने पर कार्रवाई की जाती है, लेकिन वास्तविकता यह है कि प्रशासन का इस पर कोई ठोस नियंत्रण नहीं है। प्रशासन की ओर से बार-बार आश्वासन मिलने के बावजूद, स्थिति जस की तस बनी हुई है।
पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव
अवैध रेत उत्खनन का पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। हसदेव नदी का पारिस्थितिकी तंत्र इससे बुरी तरह प्रभावित होता है। नदी के किनारों का कटाव, जलस्तर में कमी और जलीय जीवों का नुकसान, ये सब अवैध रेत उत्खनन के परिणामस्वरूप होते हैं।
इसके अलावा, रेत माफिया द्वारा चलाई जा रही गतिविधियाँ स्थानीय निवासियों के जीवन पर भी प्रभाव डालती हैं। नदी के किनारे रहने वाले लोग अपनी आजीविका के लिए नदी पर निर्भर हैं, और अवैध उत्खनन से उनके लिए चुनौतियाँ बढ़ जाती हैं।
कानूनी और नीतिगत उपाय
रेत माफिया की बढ़ती गतिविधियों को रोकने के लिए सरकार को कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है। रेत उत्खनन पर पाबंदी के बावजूद यदि यह कार्य जारी रहता है, तो इसका अर्थ है कि मौजूदा कानूनों और नीतियों में खामियाँ हैं।
सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि रेत उत्खनन पर लगे प्रतिबंध का सख्ती से पालन हो। इसके लिए स्थानीय प्रशासन और पुलिस के साथ समन्वय बनाकर नियमित छापेमारी और निरीक्षण किया जाना चाहिए।
रेत उत्खनन का यह मुद्दा केवल एक स्थानीय समस्या नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता का विषय है। इस समस्या के समाधान के लिए सरकारी तंत्र और नागरिक समाज दोनों को मिलकर काम करना होगा।
सिर्फ कानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसके सही कार्यान्वयन की भी जरूरत है। यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे जल स्रोत सुरक्षित रहें और पर्यावरणीय संतुलन बना रहे।
रेत माफिया के खिलाफ लड़ाई केवल सरकारी एजेंसियों की नहीं है, बल्कि यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम अपने प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करें और अवैध गतिविधियों के खिलाफ आवाज उठाएँ।