कसडोल – अन्तर्राष्ट्रीय महिला पुरस्कार से सम्मानित डा .क्रांति कुटे ने हमारे प्रतिनिधि को एक विशेष भेट में बताया है कि आज नागपंचमी है।इस अवसर पर श्रद्धालु अपने अपने तरीकों से इसे मानते हैं,लोग सांपों की पूजा करते हैं..मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर दूध चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं और यदि सांप दिखे तो उसे दूध पिलाते हैं…हालांकि सांपों को दूध पीना बिलकुल भी पसंद नहीं है। आइए जानते हैं आखिर कैसे शुरू हुई नागपंचमी मानने की प्रथा……
उन्होंने बताया है कि
हमारे प्राचीन ग्रंथों के अनुसार राजा परीक्षित की मृत्यु जब तकक्षक नाग के डसने से हुई तब उनके पुत्र ने प्रतिशोध लेने के लिये एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमे विश्व के सभी सांप उस यज्ञ कुंड मे अपने आप आ कर जल कर खत्म होने लगे, ऐसे मे सभी सांपों ने आस्तिक ऋषि जो जरत्कारू और मनसा के पुत्र थे उनका आह्वान किया आस्तिक ऋषि के आशीर्वाद से सभी सांपों का समुल नाश होने से बचाव हुआ और उन जले हुए सांपों को दूध से पवित्र कर उनकी जलन हटाई गई, जिससे यह प्रथा प्रचलित हुई, जो की आगे चलकर दूध से स्नान की जगह सांपो को दूध और लाई के प्रसाद चढ़ाने पर आकर रूकी।
आज हम सभी नाग पंचमी का त्योहार मनाते हैं और सांपो की बांबी या घर पे दिवार पे गोबर से सांप की आकृति बना कर पूजा करते हैं, ये हमारी आस्था है की हम सभी प्रणीयों की रक्षा के लिये यह विशेष दिन मनाते हैं,और जगत कल्याण के लिए और अच्छी सदभावना से सभी की रक्षा के लिये त्योहार मनाते हैं।
सांप कभी दूध नही पिते, उनके शरीर मे दूध को पचाने वाले अंजाइम नही पाये जाते वे पूर्णतः माँसाहारी होते हैं, सपेरों द्वारा उन्हे भूखा प्यासा रखा जाता है, और वे दूध को पानी समझकर पीने की कोशिश करते हैं लेकिन दूध के स्वाद मिलने पर उसे छोड़ देते हैं। उन्होंने विश्व के सभी समुदायों से अपील की है कि हम सभी मिलकर शपथ ले कि हम सभी आज के विषेश दिन पर प्रण लें की जीव हत्या नही करेंगे और किसी को करने भी नही देंगे । सभी जीवों को जीने का अधिकार है इस बात को सदैव स्मरण रखें।